आशा पारस फॉर पीस एंड हारमनी फाउंडेशन एवं वेद फाउंडेशन द्वारा जननायक शहीद बिरसा मुंडा जन्मजयंती पर राष्ट्रीय वेबिनार जनजातीय विकास एवं विस्तार विषय पर आयोजित किया गया।
• जनजातीय समुदाय के देशज ज्ञान को संग्रहित करने की आवश्यकता- प्रो. आशा शुक्ला
• जनजातीय समाज की गौरव गाथाओं को पढ़कर ही उन्नत राष्ट्र की कल्पना संभव- प्रो. दिवाकर सिंह राजपूत
भोपाल। शहीद बिरसा मुंडा की जन्मजयंती पर प्रति वर्ष जनजातीय गौरव दिवस मनाया जाता है। झारखंड के खूंटी स्थित ‘भगवान बिरसा मुंडा’ की जन्मस्थली उलिहातू है। यह सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण और राष्ट्रीय गौरव, वीरता और आतिथ्य के भारतीय मूल्यों को प्रोत्साहन देने में आदिवासियों के प्रयासों का प्रतीक स्थल है। उन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ भारत के विभिन्न क्षेत्रों में कई आदिवासी आंदोलन किये। जनजातीय विकास और विस्तार के लिए सरकार प्रदेश एवं केंद्र सरकार द्वारा अनेक योजनायें संचालित की जा रही है। जनजातीय समाज कला एवं देशज ज्ञान से परिपूर्ण है। उन्हें सहेजकर एवं उचित क्रियान्वयन कर ही विकास एवं विस्तार की प्रक्रिया को गति प्रदान कर सकते हैं। वर्तमान में जनजातीय समुदाय के देशज ज्ञान को संग्रहित करने की आवश्यकता है। उक्त बातें डॉ. बी.आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति प्रो. आशा शुक्ला ने जननायक शहीद बिरसा मुंडा जयंती ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के उपलक्ष्य पर आशा पारस फॉर पीस एंड हारमनी फाउंडेशन एवं वेद फाउंडेशन द्वारा आयोजित ‘जनजातीय विकास एवं विस्तार’ राष्ट्रीय वेबिनार में कही।
“इस अवसर पर शोध, नवाचार, अकादमिक एवं सामाजिक कार्यों के विस्तार हेतु शासकीय महाविद्यालय पीथमपुर तथा आशा-पारस फॉर पीस एंड हारमनी फाउंडेशन एवं वेद फाउंडेशन से अकादमिक अनुबंध (एमओयू) का लोकार्पण किया गया”
अध्यक्षीय उद्बोधन देते डॉ. बी.आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति एवं आशा पारस फॉर पीस एंड हार्मनी की निदेशक प्रो. आशा शुक्ला ने कहा कि जनजाति समाज के विकास और विस्तार के लिए निरंतर प्रयास आवश्यक है। आदिवासी अंचल में ह्यूमन ट्रैफिकिंग मुश्किल हालातों को बढ़ा रहे हैं। शिक्षा के अभाव के कारण जनजातीय बच्चियों की खरीद फरोख्त कर उनसे विवाह कर लेते हैं, बाद में उनका शोषण कर उन्हें छोड़ देते हैं। जनजातीय विकास के लिए बंद कमरे में बनी योजनायें उचित क्रियान्वयन से कोसों दूर हैं। दोनों फाउंडेशन द्वारा निरंतर जनजातीय चिंतन, मंथन युक्त सेमिनार, कार्यशाला तथा शोध आयोजित किया जाता है ताकि सामाजिक उत्तरदायित्व का निर्वहन किया जा सके।
मुख्य अतिथि के रूप में उद्बोधन देते हुए डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर के समाजशास्त्र एवं समाज कार्य के विभागाध्यक्ष प्रो. दिवाकर सिंह राजपूत ने कहा कि देशज ज्ञान के मामले में आदिवासी समुदाय हमेशा से समृद्ध रहा है। समुदाय जहां एक ओर विकास और विस्तार की राह देख रहा है, वहीं राष्ट्र के विकास में लोक परंपराओं सहित योगदान भी दे रहा है। जनजातीय समुदाय के देशज ज्ञान को संग्रहित करने की आवश्यकता है। कोविड के दौर में प्रकृति से जुड़ाव रहते हुए ही जनजातीय समाज सुरक्षित रहा और इस महामारी से लगभग अछूता भी रहा। आदिवासी समुदाय निरंतर राष्ट्र विकास में सहभागी रहा है. स्वतंत्रता आंदोलन में जनजातीय समुदाय ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। देश के गौरव गाथाओं में आदिवासी समुदाय का नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। आज के समाज को जनजातीय समाज के गौरव गाथाओं को पढ़ने, सुरक्षित एवं संरक्षित कर जनमानस में पहुंचाने की आवश्यकता है। लोगों में जनजातीय समाज के रहन-सहन लोकाचार तथा उत्कृष्ट मूल्यों को विकसित एवं नियोजित कर पहुंचाने की आवश्यकता है ताकि एक समृद्ध राष्ट्र की कल्पना कर सके।
मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय, भोपाल के समाजशास्त्र विभाग, प्रोफेसर अनीता धुर्वे ने कहा अस्तित्व अस्मिता और विकास पर प्रत्येक समाज केंद्रित रहता है। यही अस्तित्व और अस्मिता जनजातीय समाज के लिए चुनौती का विषय है। आधुनिक जनजातीय समुदाय उपभोक्तावाद में पड़ गया है। रोटी कपड़ा और मकान को पूर्ण प्राप्ति से ही विकास को एक दिशा मिलती है। उचित कार्य क्रियान्वयन को मूल्यांकन करने की जरूरत है। विकास के विभिन्न आयाम जैसे केआर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक स्तर पर विकसित होने की आवश्यकता है। जनजातीय समुदाय निरंतर प्रगति कर रहा है लेकिन इसे और गति प्रदान करने की आवश्यकता है। जनजातीय समुदाय का संस्कृति से प्रभावित है। जनजातीय समुदाय के अनेक गुमनाम नायक हैं जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया है। सामाजिक उत्थान तथा आर्थिक कल्याण के लिए हमेशा प्रयासरत रहे, उन्हें रेखांकित करने की आवश्यकता है।
विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त, मध्य प्रदेश पुलिस इंदौर सीमा अलावा ने कहा कि बिरसा मुंडा भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, धार्मिक नेता और लोक नायक थे। आदिवासी कल्याण के लिए निरंतर संघर्षशील रहे। सीमा अलावा ने कहा 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 703 जनजातियां निवासरत हैं तथा कुल आबादी का लगभग 10% जनजातीय समुदाय से संबंधित है। जनजातीय समुदाय को विकास के मुख्य धारा में लाकर ही एक स्वस्थ राष्ट्र की कल्पना की जा सकती है. मध्य प्रदेश के झाबुआ अलीराजपुर में आज भी डायन प्रथा चलती है। साथ ही विभिन्न प्रकार की विसंगतियां भी इन क्षेत्र में व्याप्त हैं। स्वास्थ्यगत समस्याओं में सिकल सेल एनीमिया की समस्या आदिवासी क्षेत्रों में ज्यादा देखने को मिलती है। समस्याओं को चिन्हित करने के साथ ही उन पर नियंत्रित करने की सुविधाओं को भी प्रदान किया जाना आवश्यक है। जनजातीय समाज को जागरूक एवं शिक्षित करने की जरूरत है. जनजातीय अंचल में शिक्षा और जागरूकता के अभाव में चिरौंजी के बदले नमक खरीदना यह अशिक्षा का ही प्रभाव है।
बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय के महिला अध्ययन विभाग की डॉ. जया फूकन ने विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए कहा कि जनजातीय गौरव शहीद बिरसामुंडा माँ भारती की परतंत्रता की बेड़ियों को तोड़ने तथा जल, जंगल, जमीन व जनजातीय संस्कृति एवं परंपराओं की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर देने वाले जनजातीय नायक, बिरसा मुंडा राष्ट्र नायक के रूप में पूजित हैं। किसी भी राष्ट्र की आर्थिक तरक्की में ज्ञान की अत्यंत आवश्यकता है। जनजातीय विकास के लिए जनजातीय समुदाय के लोकाचारों को समझने की अत्यंत आवश्यकता होती है। विकास और विस्तार को दिशा देने के लिए उनके लोक परंपराओं, लोक ज्ञान, आदिवासी अधिकार तथा उनके सामाजिक रहन-सहन परंपराओं पर अध्ययन करने की आवश्यकता है जिससे उनके कल्याण की कल्पना को साकार किया जा सके।
स्वागत एवं प्रस्तावना वक्तव्य एशियन थिंकर जर्नल के प्रधान संपादक डॉ. रामशंकर ने दिया तथा कार्यक्रम का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन संस्था के प्रबंधक लव चावडीकर ने किया। अकादमिक सहयोगी संस्था शास. महाविद्यालय पीथमपुर के प्राचार्य डॉ. विनोद खत्री द्वारा एमओयू लोकार्पण के अवसर पर सभी को सुभकामना और धन्यवाद देते हुए अपने विचार रखे । इस अवसर पर विभिन्न प्रदेशों जनजातीय समाज सहित नामचीन अध्येता, प्राध्यापक राष्ट्रीय वेबिनार से जुड़े रहे।
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